उम्मीदों का शहर
मैं उम्मीदों के शहर में रहती हूँ।
ख़्वाब मेरे पड़ोसी हैं,
जो अक्सर मेरे घर आया-जाया करते हैं।
जिनके संग मैं खुश रहती हूँ।
ऐसा नहीं कि दुश्मन नहीं जिंदगी में,
निराशा और असफलता ना जाने रोज़ कितने रिश्तों में लिपटी मिलती है।
मैं ढूंढ ही लेती हूँ खुद को खोकर भी,
जीने के लिए वज़ह तलाश ही लेती हूँ।
मुझे हर रात के बाद,
सुबह का इंतज़ार रहता है और सुबह फिर एक नयी उम्मीद लेकर,
मेरे आँगन में चली आती है।
मैं हारकर भी हारती नहीं
एक आग है मेरे भीतर, जो बुझकर भी सुलगती रहेगी
जब तक उम्मीदें हैं जिंदगी से
तब तक मेरी साँसे यूँ ही चलती रहेंगी।
अभी बहुत काम बाकि है
कितनी ही कविताये, कहानियां अधूरी हैं,
जिन्हें मुझे पूरा करना है।
मुझे जिंदगी से उम्मीदें हैं और जिंदगी को मुझसे।
❤सोनिया जाधव
#लेखनी
Shrishti pandey
10-Dec-2021 11:44 PM
Nice
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Barsha🖤👑
10-Dec-2021 10:10 PM
Nice
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Niraj Pandey
10-Dec-2021 03:48 PM
वाह बहुत खूब
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